हिन्दू विरोधी हिंदुओं को देश की भावी पीढ़ी सवालों के कटघरे में खड़ा करेगी – बी एन तिवारी


एक पुरानी कहावत है कि ” हमारी किश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था – हमे तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था ” यह कहावत हिंदुओं के एकमात्र राजनीतिक दल अखिल भारत हिन्दू महासभा पर एकदम सटीक बैठती है। अखिल भारत हिन्दू महासभा भारतीय राजनीति में वीर सावरकर की हिन्दू राजनीति को पूर्णतया स्थापित कर मुगलों और अंग्रेजों के दीर्घ शासन काल से निरंतर विलुप्त हो रही सनातनी संस्कृति और परंपराओं को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करती है, किंतु विगत अनेक वर्षों से स्वयं को हिन्दू महासभा कार्यकर्ता/पदाधिकारी कहने वालों द्वारा ही इन प्रयासों को समूल नष्ट करने का कुत्सित सफल प्रयास किया जाता रहा है। इसका मूल कारण हिन्दू महासभा में व्यक्तिवाद से प्रेरित कार्यकर्ताओं का समय समय पर हिन्दू महासभा विरोधी मानसिकता से प्रेरित होना है।


हिंदुत्व के महानायक वीर सावरकर ने एक बार कहा था कि मुझे मुसलमानों और ईसाइयों से तनिक भी भय नहीं, मैं उन हिंदुओं से भयभीत हूं, जो अपने ही धर्म के खिलाफ उठ खड़े होते हैं। वीर सावरकर को उक्त उक्ति से हिन्दू महासभा आज पूरी तरह से ग्रस्त हो चुकी है। इसका सबसे ज्वलंत प्रमाण महाराष्ट्र विधानसभा और झारखंड विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला। महाराष्ट्र के चांदीवली विधानसभा सीट पर हिन्दू महासभा महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष नितिन व्यास ने प्रखर पत्रकार पवन पाठक को विधानसभा प्रत्याशी घोषित किया और राष्ट्रीय अध्यक्ष रविन्द्र कुमार द्विवेदी द्वारा जारी फॉर्म ए और बी प्रदान किया। मीडिया में उनके प्रत्याशी घोषित होने का समाचार मीडिया मे प्रकाशित होते ही हिन्दू महासभा में व्यक्तिवाद से प्रेरित कार्यकर्ता उनके संपर्क में आ गए और अपने अपने गुट के अध्यक्ष से हस्ताक्षरित महासभा का टिकट लेने के लिए आपस में जोर आजमाइश करने लगे। पवन पाठक ने सभी से स्पष्ट किया कि उनकी आस्था रविन्द्र कुमार द्विवेदी के नेतृत्व में है और वो उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़कर जीत हासिल करेंगे।
पवन पाठक ने अपने समर्थकों के साथ विधिक रूप से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। रिटर्निंग ऑफिसर ने हिन्दू महासभा के ए और बी फॉर्म के साथ पवन पाठक का नामांकन पत्र स्वीकार किया और अगले दिन समाचार पत्रों में उनके हिन्दू महासभा प्रत्याशी के रूप में समाचार भी प्रकाशित हुआ। हिन्दू महासभा प्रत्याशी के रूप में पवन पाठक का नाम रिटर्निग ऑफिसर कार्यालय में दर्ज होते ही स्थानीय भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अधिकारियों में हड़कंप मच गया और उन्हें भाजपा प्रत्याशी की हार और पवन पाठक की जीत सुनिश्चित दृष्टिगत होने लगी। भाजपा और संघ के अधिकारियों ने पवन पाठक से संपर्क करते हुए उन पर अपना नामांकन वापस लेने का अनैतिक दबाव बनाया। उन्हें बदले में लाखों रुपए देने का लोभ भी दिया गया।हिन्दू महासभा और वीर सावरकर विचारधारा के पोषक पवन पाठक लोभ या दबाव के समक्ष झुके बिना हिन्दू महासभा के टिकट पर चुनाव लड़ने और जीत हासिल करने के संकल्प पर अडिग रहे। रिटर्निंग ऑफिसर कार्यालय द्वारा पवन पाठक को चुनाव चिन्ह बांसुरी आबंटित भी कर दिया गया।
हिन्दू महासभा में व्यक्तिवाद और पारस्परिक मतभेद से प्रेरित हिन्दू महासभा के कुछ कार्यकर्ताओं ने जयचंद की भूमिका निभाई और अपनी शिकायत में हिन्दू महासभा के पारस्परिक विवाद की जानकारी प्रदान कर उनका नाम हिन्दू महासभा प्रत्याशी से निरस्त कर पवन पाठक को निर्दलीय घोषित करने की मांग कर डाली। रिटर्निंग ऑफिसर ने तत्काल शिकायत पर संज्ञान लेते हुए पवन पाठक को निर्दलीय प्रत्याशित घोषित करने का अप्रत्याशित निर्णय जारी कर दिया। विचारणीय प्रश्न है कि हिन्दू महासभा प्रत्याशी को निर्दलीय घोषित करवाने वाले तत्वों में न तो कोई गैर हिन्दू शामिल है और न ही विरोधी दलों का कोई व्यक्तित्व शामिल है। हिन्दू महासभा में व्यक्तिवाद से प्रेरित कार्यकर्ताओं द्वारा ही हिन्दू महासभा प्रत्याशी को निर्दलीय घोषित करवाने का अप्रत्याशित कृत्य किया गया है। पवन पाठक निर्दलीय घोषित होने से निराश अवश्य हैं, किंतु निर्दलीय होने पर भी वो हिन्दू महासभा समर्थित प्रत्याशी होकर अपनी जीत के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं।
प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा पवन पाठक को हिन्दू महासभा प्रत्याशी स्वीकार किए जाने और विरोधी दलों तथा गैर हिंदुओं द्वारा कोई आपत्ति व्यक्त नहीं किए जाने के बाद भी व्यक्तिवाद के नाम पर उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी घोषित करवाने वाले महासभा कार्यकर्ता अपनी किस मानसिकता का परिचय दे रहे हैं? निश्चित ही हिन्दू महासभा के ऐसे कार्यकर्ता हिन्दू महासभा, हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिंदुत्व के लिए जेहादियों और गैर हिंदुओं से अधिक घातक सिद्ध होकर वीर सावरकर के ऊपरलिखित कथ्य को सत्य सिद्ध कर रहे है। हिन्दू महासभा महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष नितिन व्यास ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में राष्ट्रीय अध्यक्ष रविन्द्र कुमार द्विवेदी के नेतृत्व में 20 से अधिक प्रत्याशी खड़ा करने की योजना पर काम चल रहा था, किंतु व्यक्तिवाद से प्रेरित हिन्दू महासभा कार्यकर्ताओं द्वारा हमारे प्रत्याशियों को व्यक्तिवाद के नाम पर भ्रमित कर उन्हें चुनावी समर से बहुत दूर कर दिया। यही परिस्थिति झारखंड विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला। लोकसभा चुनाव 20024 में राष्ट्रीय अध्यक्ष रविन्द्र कुमार द्विवेदी द्वारा जारी टिकट पर झारखंड से सांसद का चुनाव लड़ने और वर्तमान में राष्ट्रीय मंत्री का दायित्व संभाल रहे संजय गिरी ने झारखंड प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार पाण्डेय के साथ मिलकर 20 से अधिक प्रत्याशियों को चुनाव लड़वाना चाहा। चार प्रत्याशियों ने अपना नामांकन भरा, किंतु महाराष्ट्र के समान ही व्यक्तिवाद से प्रभावित हिन्दू महासभा कार्यकर्ताओं की शिकायत पर चारों प्रत्याशियों को निर्दलीय घोषित कर दिए गए। इतना तो सुनिश्चित है कि हिन्दू महासभा और उसकी विचारधारा के सूर्य को अस्त करना विरोधी दलों और गैर हिंदुओं के सामर्थ्य में नहीं है और न ही उन्हें ऐसा करने की कोई आवश्यकता है। कारण, यह कार्य व्यक्तिवाद से प्रेरित हिन्दू महासभा के कार्यकता पारस्परिक विद्वेष से स्वयं ही कर रहे हैं। व्यक्तिवाद से प्रेरित निजी स्वार्थ में लिप्त तत्वों में इतना दम नहीं है कि वो हिन्दू महासभा प्रत्याशियों को चुनाव में खड़ा कर सकें। बस, खड़े होने वाले प्रत्याशियों के विरोध में उतरकर हिन्दू महासभा को बर्बाद करने की पटकथा लिखने में व्यस्त हैं। वर्तमान में हमें हिन्दू द्रोहियों के साथ हिन्दू महासभा में घुसे व्यक्तिवाद से प्रेरित कार्यकर्ताओं से लड़ते हुए अथवा उनका मानसिक परिवर्तन करते हुए हिन्दू महासभा विचारधारा की पवित्र गंगा को बचाने की आवश्यकता है। हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बी एन तिवारी ने कहा कि हिन्दू महासभा में रहकर हिन्दू महासभा प्रत्याशियों को निर्दलीय घोषित करवाने वाले तत्वों और हिन्दू विरोधी हिंदुओं को देश की भावी पीढ़ी सवालों के कटघरे में खड़ा करेगी।

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